जब इंसान का सब कुछ ठीक ठाक चलता है, तो उसकी जिंदगी के लिए उम्मीदें और आरजुऐं भी बढ़ जाती हैं, इन्सान पक्का इरादा कर लेता है कि वह लम्बे समय तक जीवित रहेगा। वह शायद भूल जाता है, या कम से कम भूलने की कोशिश करता है कि खुद उसकी अपनी जिंदगी पर उसका इख्तियार नहीं है।
1986 में अपने मैदान में कामयाब और निहायत ही मशहूर आदमी ने एक मैगज़ीन को इन्टरव्यू देते हुए कहा था किः
I plan to get one immediatly, if I treat my body properly I'll live to at least 150
मैं एक चीज फौरन हासिल करना चाहता हूं , यदि मैं अपने शरीर का कायदे से इलाज करूं तो मैं 150 साल ज़िन्दा रहूगा।
अपने साजो सामान को देखते हुए और दुनिया को कदमों में पड़ा देखकर ऐसा कहने वाला व्यक्ति मशहूर पाॅप सिंगर माइकल जैकशन था, जैकशन ने यह बातें हवा में नही कही थीं, बल्कि उसने इन्तिजाम भी किया था।
मशहूर है कि उसने 150 साल जीने के लिए बहुत पैसे खर्च किये थे, एक दर्जन डाक्टरों को सिर्फ अपने शरीर का मेडिकल चेक-अप करने के लिए नियुक्ति किया, जो प्रतिदिन सर के बाल से लेकर पांव के अंगूठे तक उसकी जांच करते थे, कुछ भी खाने से पहले खाने को लैब भेजा जाता था, 15 एक्सर साइज़ एक्सपर्ट को भी रखा था ताकि उसे एक्सर साइज़ कराएं।
और तो छोड़िये रिपोर्ट तो यहां तक मिलती है कि उसके लिए अंग दाता भी तैयार थे कि जैसे ही उसके जिस्म का कोई पुर्ज़ा खराब हो तुरंत उसे डूनेट कर दिया जाये।
लेकिन अफसोस उसकी पूरी तैयारी धरी की धरी रह गयी, दर्जन भर डाक्टर, लैब से जांचा हुआ खाना, 15 एक्सर साइज एक्पर्ट सब मिलकर उसकी ज़िन्दगी बचा या बढ़ा नही पाये।
25 जून 2009 को शाम सवा तीन बजे विकीपीडिया, ट्वीटर और दूसरे साइड्स पर लगभग आठ लाख लोग एक साथ गूगल पर माइकल जैकशन सर्च कर रहे थे। माइकल जैक्सन अपनी प्लानिंस से लगभग सौ साल पहले ही मर चुका था।
क्या कहते हैं इसे?
सूफियों की शब्दावली में इसे ‘‘अमल‘‘ कहते हैं यानी आरजू़ , अमल को परिभाषित करते हुए उलेमा ने कहा है कि अमल इस पक्की आरज़ू का नाम है कि कोई सोचे कि मैं बहुत दिन तक ज़िन्दा रहूंगा। ऐसा आदमी अपनी आरजुओं में गिरफ्तार होता है।
कल क्या होगा कौन देखा है, इसलिए नामालूम मामले पर कोई फौसला सुनाना, अक्लमंदी तो नहीं हो सकती, बल्कि यह बवकूफी के साथ गुनाह भी होगा।
सवाल
सवाल पैदा होता है कि तो हम दुनिया में लोगों के साथ कैसे रहें? हमने किसी से उधार लिया, उधार देने वाले ने पूछा वापस कब करेंगें ? जवाब दिया दो दिन बाद या दो महीने बाद। तो क्या हमें आरजुओं का कैदी कहा जायेगा ? दूसरी बात यह कि क्या हम जिन्दगी से उम्मीद ही छोड़ दें और निराशावादी बन जायें ?
जवाब
नही हरगिज़ नही, क्योंकि रब की रहमत से मायूस होना भी गुनाह है, क़ुरआन पाक में हुक्म हुआ कि अल्लाह की रहमत से मायूस मत हो।
यहां पर बात सिर्फ इतनी है, कि लम्बी ज़िन्दगी के लिए पक्का ख्याल पैदा कर न करें, इस गुनाह से इस तरह बचा जा सकता है कि हर आरज़ू सशर्त कर दें, मिसाल के तौर पर इस तरह कहे कि अगले साल ऐसा करूंगा अगर अल्लाह ने चाहा या इंशा अल्लाह, या यूं कहे कि अगर जिन्दगी रही तो मैं ऐसा करूंगा।
इन्सान के दिलमें यह बात बिल्कुल बैठी रहनी चाहिए कि तब तक जिन्दा रहूंगा जब तक अल्लाह की मशीअत होगी, वही जानता है कि कब तक ज़िदा रहूंगा? और जब तक जिन्दा रहूंगा अच्छे काम के लिए ज़िन्दा रहूंगा, जिन्दगी से इसी तरह की उम्मीद रखने में ही भलाई है।
इसका इलाज
आरजु़ऐ अगर लम्बी नही होंगी तो बहुत से गुनाह से बचे रहेगें, दूसरों का हक़ मारने से महफूज़ रहेगें, और आरजुऐ कम करने वाली चीज़ है "मौत" की याद। अगर दिमाग में यह बात रहे कि तमाम तर चीजें छोड़कर मर जाना है तो किसी काम के लिए किसी का हक़ मारने की संभावना कम हो जाती है।
1 Comments
Inspirational statement. Thanks a lot.
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