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why so astonished Dears!


जब से लोग सभा चुनावों के नतीजे आये हैं, विपक्षी दलों की हैरानी व परेशानी तो समझ मे आती है, लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ मुसलमान इतने ज्यादा मायूस और ग़मज़दा दिखने लगे मानो हिन्दुस्तान में इस्लामी सल्तनत आते आते रह गयी,यह बात बहुत ज्यादा समझ में नही आती। अरे साहब! हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हुकूमत कोई भी हो सब बराबर हैं, अगर कुछ लोगों को यह लगता है कि कांग्रेस या दूसरी तथाकथित पंथनिर्पेक्ष पार्टियां इस्लाम और मुसलमानों के लिए बेहतर रही हैं तो यह उनकी खुश-फहमी और खुद-फरेबी है।
इतना समझ लें कि भाजपा और तथाकथित पंथ निर्पेक्ष दल कांग्रेस व अन्य में बस इतना फर्क है कि भाजपा के नेता फटे-मुंह 80 करोड़ हिंदुओं को 20 करोड़ मुसलमानों से डराते रहते है ताकि इन 20 करोड़   आवाजों के साथ उन 80 करोड़ हिन्दुओं की आवाजों को भी दबाया जा सके, और कांग्रेस ऐसा नही करती बल्कि उस ने स्वत्रंता आंदोलन से लेकर अब तक मुसलमानो को अपने हितों को साधने के लिए इस्तेमाल किया और मुल्क के संसाधनो में जितनी उनकी भागीदारी होनी चाहिए उस का एक हिस्सा भी नही दिया।
मुझे मुल्क की दोनो बड़ी सियासी जमातों के संबंधित यह नजरिया कायम करने के लिए किसी शोध और गहन अध्ययन की जरुरत नही पड़ी लेकिन इसकी सत्यता पर पूर्ण विश्वास है!
भाजपा मुसलमानो से हिन्दुओं को डराकर हिन्दुओं की आवाजों को भी दबाती हुई ताना-शाही करना चाहती है बल्कि कर रही है इसका सुबूत 23 मई को आने वाला लोक सभा चुनाव परिणाम ही हैं क्यांेकि सैकड़ो लेखकों ने भारत की अनेक भाषाओं में पत्र लिखकर अवाम से भाजपा को वोट न देने की अपील की, विज्ञानिकों, समाजिक-कार्यकर्ताओं, शिक्षा विदों और इतिहासकारों इत्यादि ने इस सरकार के 5 साला कार्यकाल पर असंतोष जाहिर किया, बडें और जाने माने पत्र कारों ने देश की दुर्दशा पर बड़े अंग्रेजी अखबारों में लेख लिखे, मगर वह कौन सा नशा था जिसमें भारत के वाेटरो  ने मस्त होकर वोट दिया? वह हिन्दुत्व का नशा था, और हिन्दुत्व का सरल शब्दों में मतलब अल्पसंख्यकों से बहुसंख्यकों को डराकर उनके प्रति नफरत पैदा करना और खुद को हिन्दुओं का मसीहा साबित करना बन चुका है।
दूसरी बात जो उस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस और दूसरी तथाकथित सियासी जमातों ने भी मुसलमानों  को कभी मुख्य धारा में लाने की कोशिश नही की बल्कि उन्होंने उनको सिर्फ वोट बैंक के तौर पर देखा और इस्तेमाल किया वरना क्या वजह है कि आजादी के सत्तर साल बीत जाने के बावजूद इस कौम का यह हाल है कि हिन्दुस्तानी समाज में सब से ज्यादा शोषित समाज के तौर पर इसका वजूद है, दलितों से बदतर इसके हालात हैं। क्या हम इसकी जिम्मेदारी भाजपा के सर डाल सकते है?
      जिस हादसे ने मुल्क के माहौल में संप्रोदायिकता का जहर फैलाया और सबसे ज्यादा फैलाया वह बाबरी मस्जिद की शहादत है, गहराई से अगर देखा जाये तो इसका मौका देने वाला कोई और नही बल्कि यही तथाकथित सैकुलर जमातें हैं। आजादी की तहरीक में मुसलमानों ने मुसलमान रहनुमाओं को छोड़ कर इन कांग्रेसियों को अपना रहनुमा बनाया यहां तक कि खिलाफत आन्दोलन जैसी खास अपनी लड़ाई में गांधी जी कों अपना लीडर चुना मगर नतीजा क्या निकला, इसके लिए सैयद सुलेमान अशरफ बिहारी की किताब अल-नूर पढ़ना पड़ेगा । या इन विषयो पर आला हजरत इमाम अहमद रजा की लिखी गयी किताबों का अध्ययन करना पड़ेगा। आंखें खुल जायेंगीं।
मैं इन हालात में कौम को कोई नसीहत नही करुंगा और न ही मैं इस लायक हूं लेकिन अपने रहनुमाओं से यह गुजा़रिश जरुर करना चाहता हूं कि अगर अभी वक्त नही आया है तो कब आयेगा कि कौम की सही रहनुमाई की जाये, कौम की तकदीर लायक अफराद और योग्य सपूतों से बनती है जिसकी हमारे यहां बहुत कमी है। 


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